नाना साहेब जीवनी – Biography of Nana Saheb in Hindi Jivani

0

Nana Saheb Biography in Hindi Get Exam Study Notes on Nana Saheb . नाना साहेब शिवाजी के शासनकाल के बाद के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक – नाना साहेब की जीवनी

नाना साहेब शिवाजी के शासनकाल के बाद के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक थे। उन्हें बालाजी बाजीराव के नाम से भी संबोधित किया गया था। 1749 में जब छत्रपति शाहू की मृत्यु हो गई, तब उन्होंने पेशवाओं को मराठा साम्राज्य का शासक बना दिया था। शाहू का अपना कोई वारिस नही था इसलिए उन्होंने बहादुर पेशवाओं को अपने राज्य का वारिस नियुक्त किया था।

नाना साहेब के दो भाई थे, क्रमशः रघुनाथराव और जनार्दन। रघुनाथराव ने अंग्रेज़ों से हाथ मिलकर मराठाओं को धोखा दिया, जबकि जनार्दन की अल्पायु में ही मृत्यु हो गयी थी। नाना साहेब ने 20 वर्ष तक मराठा साम्राज्य पर शासन किया (1740 से 1761)।

मराठा साम्राज्य के एक शासक होने के नाते, नाना साहेब ने पुणे शहर के विकास के लिए भारी योगदान दिया। उनके शासनकाल के दौरान, उन्होंने पूना को पूर्णतयः एक गांव से एक शहर में बदल दिया था। उन्होंने शहर में नए इलाकों, मंदिरों, और पुलों की स्थापना करके शहर को एक नया रूप दे दिया। उन्होंने कटराज शहर में एक जलाशय की स्थापना भी की थी। नाना साहेब एक बहुत ही महत्वाकांक्षी शासक और एक बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे।

1741 में,उनके चाचा चिमणजी का निधन हो गया जिसके फलस्वरूप उन्हें उत्तरी जिलों से लौटना पड़ा और उन्होंने पुणे के नागरिक प्रशासन में सुधार करने के लिए अगला एक साल बिताया। डेक्कन में, 1741 से 1745 तक की अवधि को अमन और शांति की अवधि माना जाता था। इस दौरान उन्होंने कृषि को प्रोत्साहित किया, ग्रामीणों को सुरक्षा दी और राज्य में काफी सुधार किया।

1 जुलाई 1857 को जब कानपुर से अंग्रेजों ने प्रस्थान किया तो नाना साहब ने पूर्ण् स्वतंत्रता की घोषणा की तथा पेशवा की उपाधि भी धारण की। नाना साहब का अदम्य साहस कभी भी कम नहीं हुआ और उन्होंने क्रांतिकारी सेनाओं का बराबर नेतृत्व किया। फतेहपुर तथा आंग आदि के स्थानों में नाना के दल से और अंग्रेजों में भीषण युद्ध हुए। कभी क्रांतिकारी जीते तो कभी अंग्रेज। तथापि अंग्रेज बढ़ते आ रहे थे। इसके अनंतर नाना साहब ने अंग्रेजों सेनाओं को बढ़ते देख नाना साहब ने गंगा नदी पार की और लखनऊ को प्रस्थान किया। नाना साहब एक बार फिर कानपूर लौटे और वहाँ आकर उन्होंने अंग्रेजी सेना ने कानपुर व लखनऊ के बीच के मार्ग को अपने अधिकार में कर लिया तो नाना साहब अवध छोड़कर रुहेलखंड की ओर चले गए। रुहेलखंड पहुँचकर उन्होंने खान बहादुर खान् को अपना सहयोग दिया। अब तक अंग्रेजों ने यह समझ लिया था कि जब तक नाना साहब पकड़े नहीं जाते, विप्लव नहीं दबाया जा सकता। जब बरेली में भी क्रांतिकारियों की हार हुई तब नाना साहब ने महाराणा प्रताप की भाँति अनेक कष्ट सहे परंतु उन्होंने फिरंगियों और उनके मित्रों के संमुख आत्मसमर्पण नहीं। अंग्रेज सरकार ने नाना साहब को पकड़वाने के निमित्त बड़े बड़े इनाम घोषित किए किंतु वे निष्फल रहे। सचमुच नाना साहब का त्याग एवं स्वातंत्र्य, उनकी वीरता और सैनिक योग्यता उन्हें भारतीय इतिहास के एक प्रमुख व्यक्ति के आसन पर बिठा देती है।

अंग्रेज़ों के शत्रु

लॉर्ड डलहौज़ी ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के बाद नाना साहब को 8 लाख की पेन्शन से वंचित कर, उन्हें अंग्रेज़ी राज्य का शत्रु बना दिया था। नाना साहब ने इस अन्याय की फरियाद को देशभक्त अजीम उल्लाह ख़ाँ के माध्यम से इंग्लैण्ड की सरकार तक पहुँचाया था, लेकिन प्रयास निस्फल रहा। अब दोनों ही अंग्रेज़ी राज्य के विरोधी हो गये और भारत से अंग्रेज़ी राज्य को उखाड़ फेंकने के प्रयास में लग गये। 1857 में भारत के विदेशी राज्य के उन्मूलनार्थ, जो स्वतंत्रता संग्राम का विस्फोट हुआ था, उसमें नाना साहब का विशेष उल्लेखनीय योगदान रहा था।

विद्वानों के मतभेद

कुछ विद्वानों एवं शोधार्थियों के अनुसार, महान् क्रान्तिकारी नाना साहब के जीवन का पटाक्षेप नेपाल में न होकर, गुजरात के ऐतिहासिक स्थल ‘सिहोर’ में हुआ। सिहोर में स्थित ‘गोमतेश्वर’ स्थित गुफा, ब्रह्मकुण्ड की समाधि, नाना साहब के पौत्र केशवलाल के घर में सुरक्षित नागपुर, दिल्ली, पूना और नेपाल आदि से आये नाना को सम्बोधित पत्र, तथा भवानी तलवार, नाना साहब की पोथी, पूजा करने के ग्रन्थ और मूर्ति, पत्र तथा स्वाक्षरी; नाना साहब की मृत्यु तक उनकी सेवा करने वाली जड़ीबेन के घर से प्राप्त ग्रन्थ, छत्रपति पादुका और स्वयं जड़ीबेन द्वारा न्यायालय में दिये गये बयान इस तथ्य को सिद्ध करते है कि, सिहोर, गुजरात के स्वामी ‘दयानन्द योगेन्द्र’ नाना साहब ही थे, जिन्होंने क्रान्ति की कोई संभावना न होने पर 1865 को सिहोर में सन्न्यास ले लिया था। मूलशंकर भट्ट और मेहता जी के घरों से प्राप्त पोथियों से उपलब्ध तथ्यों के अनुसार, बीमारी के बाद नाना साहब का निधन मूलशंकर भट्ट के निवास पर भाद्रमास की अमावस्या को हुआ।

१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम

1857 के स्वाधीनता संग्राम की योजना बनाने वाले, समाज को संगठित करने वाले,अंग्रेजी सरकार के भारतीय सौनिकों में स्वाधीनता संग्राम में योगदान देने के लिए तैयार करने वाले प्रमुख नेता थे नाना साहब पेशवा।

उनमें प्रखर राष्ठ्रभक्ति थी, असीम पौरूष था, तथा सम्पर्क साधन करने का इतना कौशल्य तथा वाणी की इतनी मधुरता थी कि अंग्रेज सत्ताधारी लोग उनकी योजना की जानकारी अपने गुप्तचरों के द्वारा भी लम्बे समय तक न जान सके। यह कार्य इतनी कुशलता के किया गया कि लम्बे समय तक अंग्रेज लोग उन्हें अपना सहयोग व हितकारी मानते रहे।

नाना साहब पेशाव का जन्म, महाराष्ट्र के अन्दर माथेशन घाटी में वेणु नामक एक छोटे से ग्राम में हुआ था। यह गाँव इस समय अहमदनगर जिले के कर्जत नामक तहसील में हैं। इनका जन्म 16 मई 1825 को रात्रि के आठ व नौ बजे के मध्य में हुआ था। कुछ लोगों का मत है कि इनका जनम 1824 में हुआ था। उनके पिता का नाम माधवराव नारायण भट्ट था। व माँ का नाम गंगाबाई था। बचपन में नाना साहब का नाम गोविन्द घोंड़ोपन्त था। बचपन में ही इन्होंने तलवार व भाला चलाना शीघ्र ही सीख लिया था। दूर-दूर तक वे स्वयं घुड़सवारी भी करते थे। उनका परिवार अत्यन्त साधारण था परन्तु उनके पिता श्रद्धेय बाजीराव पेशाव के संगोत्रीय थे। सन 1816 में यह परिवार बाजीराव पेशवा के साथ ब्रह्मावर्त आ गया था।

नाना साहेब की जीवनी (Nana Saheb Biography in Hindi Study Notesपर आधारित परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्णप्रश्न :

In conclusion, Nana Saheb Biography in Hindi – नाना साहेब की जीवनी and All Study Notes GK Questions are an important . In addition For General Knowledge Questions Visit Our GK Based Website @ www.upscgk.com

Leave A Reply

Your email address will not be published.

satta king chart